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आयुर्वेद अपनाकर वृद्धावस्था में रह सकते हैं सेहतमंद, पौष्टिक, सुपाच्य व हल्का भोजन वृद्धावस्था में रखता है तंदुरुस्त, शासकीय आयुर्वेद कॉलेज रायपुर के सह-प्राध्यापक डॉ. संजय शुक्ला बता रहे हैं सेहतमंद जीवन जीने के उपाय, एक बार जरूर पढ़ें

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रायपुर । आयुर्वेद के आचार्य सुश्रुत ने जरावस्था यानि बुढ़ापा को स्वाभाविक रोग बताया है। वृद्धावस्था में आमतौर पर पुरूष और महिलाओं में हड्डियों से संबंधित रोग जैसे जोड़ों का दर्द, हड्डियों का कमजोर होना यानि आॕस्टियोपोरोसिस जैसे अस्थि रोग, आंख और कान से संबंधित रोग, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, मांसपेशियों में कमजोरी, कब्ज, अनिद्रा, स्मृति लोप, चिड़चिड़ापन, क्रोध, अकेलापन और अवसाद जैसे रोग होते हैं। वृद्धावस्था में सेहतमंद बने रहने के लिए आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में व्यापक साधन मौजूद हैं। इस अवस्था में व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से दुर्बल हो जाता है, इसलिए उनकी सेहत की देखभाल के लिए रोग प्रतिरोधक दवाओं और रसायन के साथ-साथ पारिवारिक संबंध की भी जरूरत होती है। वृद्धावस्था में तंत्रिका तंत्र और पाचन तंत्र दोनों कमजोर हो जाते हैं। लिहाजा उन्हें सक्रिय रखने के लिए आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में आयु, देहबल और पाचन शक्ति के अनुरूप भोजन और औषधि देने का परामर्श है।
शासकीय आयुर्वेद कॉलेज रायपुर के सह-प्राध्यापक डॉ. संजय शुक्ला ने बताया कि वृद्धावस्था में भोजन हल्का, सुपाच्य और पौष्टिक होना चाहिए। इसमें मुख्य रूप से फल, ड्राइफ्रूट्स, अंकुरित अनाज, सलाद, खिचड़ी, दाल, चांवल, रोटी, हरी तरकारी, दूध, घी और छाछ शामिल करना चाहिए तथा ज्यादा वसायुक्त, ज्यादा मीठा और नमक वाले खाद्य पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए।
वृद्धावस्था में आयुर्वेद चिकित्सा विशेषज्ञ के परामर्श पर आंवला, हरड़, शिलाजीत, अश्वगंधा, अर्जुन, पिपली, त्रिफला चूर्ण और च्यवनप्राश का भी सेवन कर सकते हैं। इस आयु में हड्डियों व जोड़ो के दर्द और अनिद्रा-अवसाद जैसे रोगों के उपचार के लिए पंचकर्म और शिरोधारा कारगर है। इसे आयुर्वेद चिकित्सक के परामर्श व मार्गदर्शन में ही लेना चाहिए। वृद्धावस्था में शारीरिक और मानसिक रूप से सक्रिय रहने के लिए प्रतिदिन पैदल चलने, योगाभ्यास, ध्यान, सुबह की धूप सेंकने जैसी क्रियाओं को रोजमर्रा के जीवन में शामिल करना चाहिए।
डॉ. शुक्ला ने बताया कि चूंकि वृद्धावस्था में लोग आमतौर पर अपने आपको सामाजिक और पारिवारिक रूप से अकेला और उपेक्षित महसूस करते हैं, इसलिए वे चिड़चिड़े और गुस्सैल स्वभाव के हो जाते हैं। इन विकारों के प्रति परिजनों का संवेदनशील होना जरुरी है। वृद्धावस्था में मानसिक रूप से प्रसन्नचित्त और सकारात्मक बने रहने के लिए आचार रसायन का निर्देश है। आचार रसायन के अंतर्गत अच्छा आचरण, सत्य, दया, परोपकार और अहिंसा का पालन, क्रोध, लोभ, ईर्ष्या का त्याग और आध्यात्मिक प्रवृत्ति का पालन निहित है। बुजुर्ग इस रसायन के द्वारा आत्मिक सुख और शांति प्राप्त कर सकते हैं जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का आधार है। पारिवारिक सदस्यों की भी जिम्मेदारी है कि वे बुजुर्गों के साथ रोज थोड़ा समय बिताएं। उनके साथ इनडोर गेम्स खेलें ताकि वे अपने आपको सुरक्षित और परिवार से जुड़ा महसूस कर सकें।

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