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सीबीआई इन एक्शन : पूर्व केंद्रीय वित्त सचिव के ठिकानों पर छापा, प्रतिभा इंडस्ट्रीज पर भी शिकंजा

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नई दिल्ली । केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम मामले में पूर्व वित्त सचिव अरविंद मायाराम के दिल्ली और जयपुर स्थित परिसरों पर छापेमारी कर की। यह कार्रवाई 8 घंटे से ज्यादा तक चली।?सीबीआई के एक सूत्र ने कहा कि छापेमारी के दौरान कुछ आपत्तिजनक दस्तावेज बरामद किए गए हैं। फिलहाल सीबीआई ने इस मामले पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। अब तक कोई गिरफ्तारी भी नहीं हुई है। उधर, एक अन्य मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने प्रतिभा इंडस्ट्रीज, इसके निदेशकों और अन्य के खिलाफ 4,957 करोड़ रुपये के बैंक ऋण धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया है और मुंबई और ठाणे में छापेमारी कर रही है। जानकारी के अनुसार, 12 सितंबर, 2022 को संजय कुमार तिवारी, उप महाप्रबंधक, बैंक ऑफ बड़ौदा, मुंबई द्वारा प्रतिभा इंडस्ट्रीज लिमिटेड, इसके निदेशकों अजीत भगवान कुलकर्णी, रवि कुलकर्णी, सुनंदा दत्ता कुलकर्णी, शरद प्रभाकर देशपांडे और अन्य के खिलाफ बैंक ऑफ बड़ौदा के नेतृत्व वाले 17 बैंकों के कंसोर्टियम को 4,957 करोड़ रुपए (बैंक ऑफ बड़ौदा द्वारा की गई शिकायत के अनुसार 4735.67 करोड़ रुपये और एसबीआई द्वारा दिए गए शासनादेश दिनांक 13-09-2022 के अनुसार 221.64 करोड़ रुपये कंसोर्टियम सदस्य बैंक में से एक) की धोखाधड़ी करने की शिकायत दर्ज कराई। प्रतिभा इंडस्ट्रीज के खाते को 31 दिसंबर, 2017 को एनपीए के रूप में वगीर्कृत किया गया था। इसके बाद कंसोर्टियम बैंकों के सदस्यों द्वारा खातों को भी धोखाधड़ी घोषित किया गया था। प्रतिभा इंडस्ट्रीज बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के विकास में थी, जिसमें डिजाइनिंग, इंजीनियरिंग और क्रियान्वयन, परिसर का निर्माण, एकीकृत जल संचरण, वितरण परियोजनाएं, जल उपचार संयंत्र, सामूहिक आवास परियोजनाएं, प्रीकास्ट डिजाइन और निर्माण, सडक़ निर्माण और शहरी बुनियादी ढांचा आदि शामिल थे। सीबीआई ने कहा- आरोपी ने कर्ज लेने वाली कंपनी से संबंधित पार्टियों और सहायक कंपनियों को भारी मात्रा में पैसा दिया था और बाद में, इन अग्रिमों को कंपनी द्वारा बट्टे खाते में डाल दिया गया था। कंपनी ने अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए नकली बिक्री और खरीद लेनदेन में प्रवेश किया था। इसके अलावा, ऋणदाता बैंकों से क्रेडिट सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए, कार्य-प्रगति को कथित रूप से बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया था और विक्रेता देयता की बड़ी राशि को बिना किसी सहायक दस्तावेज के सीधे ग्राहक खाते के विरुद्ध समायोजित किया गया था।

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