रायपुर । इस बात में कोई दो राय नहीं हो सकती कि पिछले कुछ दिनों से प्रदेश का सियासी पारा गर्माया हुआ है । बदलाव की बयार बहने के संकेत तो तभी से मिलने लगे थे,जब पार्टी के कई वफादार नेताओं ने मुख्यमंत्री की कार्यशैली से आजिज आकर अपना रास्ता बदल लिया । इस बात में कोई संदेह नहीं है कि भूपेश बघेल, पी एल पुनिया, टी एस सिंहदेव तथा ताम्रध्वज साहू की चौकड़ी ने अंगद के पैर की तरह जमे भाजपा राज के कुशासन को उखाड़ फेंकने में अहम भूमिका निभाई थी, परंतु कहते हैं कि सफलता हासिल करने की अपेक्षा, सफलता को बरकरार रख पाना ज्यादा कठिन होता है । नगरीय प्रशासन तथा आबकारी विभाग में हो रहे भारी भ्रष्टाचार इस बात के स्पष्ट प्रमाण है कि ऊपर से शांत दिखाई देने वाले महासागर की अनंत गहराईयों में कहीं पर भारी उथल – पुथल मची हुई है । परंतु यह भी एक सच्चाई है कि 24 कैरेट सोने के गहने भी तो नहीं बनते ।
अपने मुख्यमंत्रित्व काल के शुरुआती दौर में भूपेश बघेल ने यह संकेत जरूर दिया थे कि जो औरत बहू बनकर सबसे ज्यादा मार खाती है, वही सास बनकर खुद पर हुए अत्याचार का बदला लेती है । परंतु बघेल की अपनों पे सितम, गैरों पे रहम जैसी अवधारणा से सचमुच उनके अपने दूर होते चले गए । रही सही कसर सी एम हाउस में बैठी उनकी अनुभवहीन टीम ने पूरी कर दी । दरअसल मुख्यमंत्री बघेल, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष की छवि से कभी बाहर निकल ही नहीं पाए । दोनों पदों में सबसे अहम बुनियादी फर्क यह है कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी का कार्यक्षेत्र संकुचित है तथा पार्टी लाइन से जुड़े पदाधिकारियों व लाखों कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चलने की एक सम्पूर्ण राज्य के मुख्यमंत्री होने की बनिस्पत एक छोटी जिम्मेदारी है । साथ ही मुखिया मुख सो चाहिए, खान पान को एक ।
पाले पोसे सकल अंग, तुलसी सहित विवेक । की परंपरा का निर्वहन सत्ता संचालन के दृष्टिकोण से अनिवार्य माना गया है । चंद व्यक्तियों को खुश करके सत्ता का स्वाद लंबे समय तक नहीं लिया जा सकता । बेहतर होता यदि वे आम आदमी का आदमी बन कर राज करते तो संभवत: बगावत का दंश झेलने से बचे रह सकते थे । राज्य में कांग्रेसी सत्ता के आरूढ़ होने के बाद से लगभग हाशिए पर धकेल दिए गए राजा साहेब द्वारा अभी हाल ही में दिए गए दो बयानों से साफ जाहिर होता है कि कांग्रेस के भीतर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है । कांग्रेस में हो रही बगावत के तार वर्चस्व की लड़ाई से जुड़े बताए जाते हैं । अत्यंत विश्वस्त सूत्रों के अनुसार निगमों- मंडलों में होने वाली नियुक्तियां महज इस वजह से मुल्तवी कर दी गई, क्योंकि बघेल नहीं चाहते थे कि उनके प्रबल प्रतिद्वंदी द्वारा अनुशंसित किसी ऐसे व्यक्ति को सत्ता में भागीदार बना दिया जाए,जो बाद में उनके खुद के राजनैतिक भविष्य के लिए भस्मासुर साबित हो ।
बताया जाता है कि राजा साहेब द्वारा बिलासपुर के अपने खास समर्थक के लिए किसी भी आयोग/मंडल/निगम के अध्यक्ष के लिए एक पद की दावेदारी की पेशकश की गई थी, परंतु उसके लिए वन मैन आर्मी मुख्यमंत्री ने साफ मना कर दिया । पहले से ही हाशिए पर चल रहे राजा साहेब ने इस मुद्दे को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न मानकर 50 विधायकों को साथ लेकर इस्तीफा देने वाला बयान जारी कर दिया । इससे पहले भी दो सप्ताह बाद सूची जारी करने का बयान भी उनके द्वारा दिया गया था, जिसका साफ-साफ मतलब यह था कि दो सप्ताह के भीतर बघेल अपने फैसले पर पुनर्विचार कर लें अन्यथा नतीजा भुगतने के लिए तैयार रहें । बगावत की इस आग को हवा देने के लिए राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा है कि भाजपा आलाकमान ने भी मुफ्त सेवा की पेशकश कर दी है।