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प्रशासनिक राजनेता व अवैध माफियाओं की मिलीभगत से शराब ही नहीं अवैध रेत का भी धड़ल्ले से चल रहा कारोबार

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भोपाल। मध्यप्रदेश ही नहीं पूरे देश की नजरों में प्रदेश का सबसे गरीब जिला अलीराजपुर को अवैध शराब के कारोबार के नाम पर पहचाना जाता है? लेकिन शायद लोगों को यह पता नहीं होगा कि इस जिले में अकेला अवैध शराब का कारोबार ही नहीं बल्कि प्रशासनिक और राजनेताओं की मिलीभगत से कराड़ों का अवैध रेत का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है? इस जिले में अवैध रेत की स्थिति यह है कि उनसे भरे डम्पर और ट्रक धड़ल्ले से थाने के सामने से गुजरते आते हैं? लेकिन जिले का कोई भी थाने का अधिकारी या पुलिसकर्मी इस तरह के रेत के अवैध कारोबार को रोकने में दिलचस्पी क्यों नहीं लेते? इसको लेकर जिले में तरह-तरह की चर्चायें व्याप्त हैं और लोग इसे भी प्रदेश के आबकारी और वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा की भजकलदारम की नीति के चलते अवैध संरक्षण में कारोबार फल-फूल रहा है? जहां तक अलीराजपुर की बात करें तो अलीराजपुर और झाबुआ इस प्रदेश के वह दो जिले हैं जहां शराब के अवैध कारोबारियों की मिलीभगत के चलते इन जिलों के प्रशासनिक अधिकारी और राजनेताओं के संरक्षण के चलते, इस तरह के अवैध कारोबार धड़ल्ले से चल रहे हैं? हालांकि इस तरह के कारोबार के पीछे इन जिलों के रहवासी प्रशासनिक और राजनेताओं की भजकलदारम की नीति मानकर चलते हैं? सवाल यह उठता है कि इस गरीब जिले से प्रतिदिन पौने दो करोड़ की अवैध शराब का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा हो और ऐसा नहीं कि इस कारोबार की भनक जिले के प्रशासनिक अधिकारियों व उस जिले के राजनेताओं को नहीं हो यह संभव ही नहीं है? लेकिन इस तरह के कारोबार के बदले जिले के लोगों को इन माफियाओं से भजकलदारम के दौर के चलते उनका यह कारोबार धड़ल्ले से फल-फूल रहा है? सवाल यह भी उठता है कि जिस जिले के प्रभारी मंत्री को राज्य के आबकारी मंत्री जगदीश देवड़ा ने अपने क्षेत्र में शराब कारोबारी के यहां से बिकी जहरीली शराब से 14 लोगों की मौत के बदले उस कारोबारी के लडक़े से 14 लोगों की मौत के बदले स्वयं तो सोने की चैन भेंट में लेकर गले में धारण की हो? यही नहीं जगदीश देवड़ा के गृह जिला मंदसौर और अलीराजपुर के प्रभारी मंत्री को उसी जहरीली शराब के कारोबारी के बेटे से चांदी की कटार भेंट कराई हो? तो सवाल यह भी उठता है कि क्या यह सब खेल उनका अलीराजपुर में नहीं चल रहा होगा? जहां प्रतिदिन अवैध शराब का कारोबार धड़ल्ले से फल-फूल रहा हो तो वहीं इसी जिले में रेत का अवैध कारोबार भी बखूबी धड़ल्ले से चल रहा है? सवाल यह उठता है कि क्या जिले के प्रशासनिक अधिकारियों राजनेताओं और जिले के प्रभारी मंत्री जिन्होंने जगदीश देवड़ा के सहयोग से उनके निर्माचन क्षेत्र उस मंदसौर जिले जिसके वह प्रभारी हैं वहां चांदी की कटार भेंट ली थी? तो अलीराजपुर में क्या हो रहा है इसको लेकर भी जिले के आमजनमानस में तरह-तरह की चर्चायें व्याप्त हैं? यहाँ के स्थानीय लोग यह मानकर चल रहे हैं कि इन्हीं प्रशासनिक अधिकारियों, राजनेता और प्रभारी मंत्री की बदौलत प्रदेश के दो जिले अलीराजपुर और झाुबआ ऐसे हैं जहां शराब के सरकारी ठेके में प्रदेशभर के जिलों की सबसे ज्यादा बोली लगाई जाती है? लेकिन इन जिलों में सरकारी दुकानों पर पाँच हजार रुपये की बिक्री शराब की नहीं होती? तो सवाल यह उठता है कि आखिर जितनी राशि की शराब का ठेका दिया जाता है वह बिकती कहाँ है? क्या जिले के प्रशासनिक अधिकारियों, राजनेताओं व प्रभारी मंत्री को इसकी भनक तक नहीं है? इन सभी के इस तरह के कारोबार को अनदेखा करने की पीछे की रणनीति को लोग इन शराब कारोबारियों को संरक्षण ही मानकर चलते हैं? यह जिले भले ही आदिवासी बाहुल्य हों और अलीराजपुर को प्रदेश का सबसे गरीब जिला माना जाता हो? लेकिन वहां पदस्थ प्रशासनिक अधिकारियों की आर्थिक स्थिति का यदि भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने का ढिंढोरा पीटने वाली भाजपा सरकार के मुखिया या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी किसी निष्पक्ष एजेंसी से जांच करा लें तो इन सभी की संपत्ति में जो इजाफा इन जिलों में पदस्थापना के बाद हुआ वह भी अपने आपमें एक रिकार्ड माना जाएगा? कुल मिलाकर इन जिलों में होने वाली अधिकारियों की पदस्थापना पर भी जैसी कि इस जिले के लोग बताते हैं कि इन जिलों में पदस्थ होने वाले प्रशासनिक अधिकारी इन जिलों में सत्ताधारी नेताओं और जिले के प्रभारी मंत्रियों को पहुंचाकर इन मलाईदार जिलों में पदस्थापना कराने के लिये हमेशा लालायित रहते हैं? कुल मिलाकर झाबुआ और अलीराजपुर में पदस्थ प्रशासनिक अधिकारियों की पदस्थापना के पूर्व और बाद में आर्थिक स्थिति की किसी निष्पक्ष एजेंसी से जांच करा लें तो स्थिति साफ हो जाएगी कि प्रदेश का सबसे गरीब जिला अलीराजपुर है तो अलीराजपुर के रास्ते गुजरात में अवैध शराब के कारोबारियों द्वारा प्रतिदिन पौने दो करोड़ रुपये की शराब का कारोबार धड़ल्ले से चलता है तो वहीं अलीराजपुर और झाबुआ जिले में हर सरकारी योजना की यह स्थिति है कि सिर्फ कागजों पर ही इन जिलों में पदस्थ अधिकारियों द्वारा योजनाओं की रंगोली सजाकर सरकार और सरकार के मुखिया को गुमराह किये जाने का दौर भी धड़ल्ले से चलता है? जबकि इन जिलों की वस्तुस्थिति यह है कि इन जिलों की अधिकांश आबादी गुजरात व अन्य प्रांतों में रोजगार के लिये भटकती नजर आती है? उनको मिलने वाला खाद्यान्न भी कहाँ जाता है और इसे कौन खाता है? यह भी साफ हो जाएगा? तो वहीं इन जिलों में मुख्यमंत्री के अधीनस्थ महिला बाल विकास विभाग के माध्यम से चलने वाली आंगनबाड़ी केंद्रों से मिलने वाला मध्याह्न भोजन व महिलाओं को मिलने वाले पोषण आहार की स्थिति भी कागजों पर रंगोली सजाकर गुमराह करने का काम भी इन जिलों में धड़ल्ले से चलता है? प्रदेश के सबसे गरीब जिला अलीराजपुर और झाबुआ की आबादी आदिवासियों की है और उन्हीं आदिवासियों की नाराजगी के कारण मुख्यमंत्री शिवराज की भाजपा सरकार को 2018 के विधानसभा सत्ता से बेदखल होना पड़ा था? अब इन जिलों के आदिवासी नहीं बल्कि संपूर्ण प्रदेश व देश के आदिवासियों को लोक लुभावनी घोषणायें करने में लगी हुई है? लेकिन इन सब योजनाओं की इन जिलों में पदस्थ अधिकारी सरकारी योजनाओं की रंगोली सजाकर करने में लगी हुई है? जबकि जमीनी स्थिति कुछ और है? कुल मिलाकर आदिवासी जिलों के प्रशासनिक अधिकारियों का जो खेल इन जिलों के राजनीतिक नेताओं और जिले के प्रभारी मंत्रियों के संरक्षण में चल रहा है उसको लेकर भी हालात अजब-गजब है? यदि इसकी निष्पक्ष जांच कराई जाए तो आदिवासी जिलों में सरकारी योजनाओं की जमीनी हकीकत स्पष्ट हो सकेगी?

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