रायपुर । शरद पूर्णिमा के दिन रविवार को आचार्य विद्यासागर जी महाराज का जन्मदिवस महोत्सव आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज के ससंघ सानिध्य में धूमधाम से मनाया गया। पूजा,भक्ति के साथ सभी ने पद्मप्रभ दिगंबर जैन मंदिर लाभांडी में जारी चातुर्मासिक प्रवचनमाला में धर्मलाभ लिया। कार्यक्रम में विशेष अतिथि छत्तीसगढ़ शासन के संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत उपस्थित रहे। आचार्य ने अपनी मंगल देशना में कहा कि मात्र पीठ पर बस्ते लादकर अपने बच्चों को स्कूल मत भेजो,अपने घर में भी संस्कार की कक्षा लगाओ।
आचार्य ने कहा कि संसार में प्राण छूट जाए लेकिन भक्ति न छूटे,प्राण छूट जाए लेकिन विश्वास न छूटे। प्राण पुन: पुन: मिल जाएंगे, यदि आस्तिक हो। मित्र मंत्री भगत जी चाहे धर्मसभा हो या राजनीति की सभा हो,अपनी बात कहने में डर नहीं रखना चाहिए। बच्चे-बच्चे को समझाओ कि बेटा पुनर्भव होता है, यदि पुनर्भव आप अपने बच्चे को नहीं समझा पाए तो आपके मठ -मंदिर सब बेकार होंगे,क्योंकि आपके बेटे ने कहा कि मंदिर मत जाओ,किसने देखा है स्वर्ग, किसने देखा है नर्क, मंदिर जाने से क्या मिलता है ? उसी समय आप अपना सिर्फ पटक लेना और कहना मुझे नहीं मालूम था कि मेरे कुल में नास्तिक का जन्म हो गया है।
आचार्य ने कहा कि देश के माता-पिता को आज ही सूचना दे दो कि बच्चा स्कूल जाएगा तो धन कमाएगा और घर में सीखेगा तो धर्म कमाएगा। केवल बच्चे को बस्ता दे देना यही कर्तव्य की पूर्ति नहीं है, मित्र किसान बुआई के बाद घर में नहीं बैठता,वह मेड़ पर घूमने भी जाता है। चाहे मंत्री भगत हो या जितने श्रावक बैठे हैं, सब से पूछ लेना कि 2 दिन खाने और जाने को नहीं मिले तो चलेगा क्या ? विश्वास मानिए 2 दिन खाने को नहीं मिला तो आदमी मरेगा नहीं उसे तकलीफ नहीं होगी, लेकिन जाने को नहीं मिला तो जाने की जगह ढूंढेगा और यदि निकलना ही बंद हो जाए तो डॉक्टर से मिलेगा। मित्र अंदर जाए या न जाए बाहर निकलना जरूरी है। पेट साफ हो गया तो कष्ट शरीर को नहीं होगा और मन साफ हो गया तो कष्ट आत्मा को नहीं होगा।
आचार्य ने कहा कि ये बात देश के नागरिकों से कह दो कि किसान धान बोने के बाद,धान जब तक घर में नहीं पहुंचाता, तब तक प्रतिदिन सुबह-शाम खेत की मेड़ पर घूमता है। किसान आपको व आचार्य परमेष्ठी को भी शिक्षा देता है, माता-पिता और देश के राजनेता को भी शिक्षा देता है। किसान फसल बोने के बाद मेड़ पर घूमता है, जब तक अंकुर नहीं होते और पौधे हो गए तो पशु न चर जाएं। ऐसे ज्ञानियों केवल बस्ता पकड़ा दिया आपने बच्चों को तो उस किसान से सीखो, बच्चों को केवल पढऩे मत भेजो, बच्चों को सुबह-शाम देखना सीखो, उनके अंदर कुसंस्कारों की चिडिय़ा तो नहीं चुग गई,उनके भीतर पशु तो प्रवेश नहीं कर गया है।
आचार्य ने कहा कि किसान से आचार्य परमेष्ठी भी सीखें कि आपने दीक्षा तो दे दी लेकिन दीक्षा के उपरांत मुनिराजों के भीतर अहंकार के पशु तो प्रवेश नहीं कर गए, शिथलाचार्य के पक्षी तो प्रवेश नहीं कर रहे हैं,नहीं तो चारित्र के धान नष्ट हो जाएंगे,इसलिए हमेशा देखते रहना चाहिए। भारत देश संस्कारों का देश है, यह देश साधु-संतों,श्रमणों का देश है। मेरे मित्र दुनिया के लोग समय खाली होता है तो सिनेमा हॉल जाते हैं और भारत के लोग जो संस्कारवान होते हैं वह सिनेमा हॉल नहीं जाते, साधुओं के चरणों में जाते हैं।
आचार्य ने कहा कि आप मीठा खिलाओगे तो मीठा यश पाओगे। संसार में संपत्ति का संग्रह करना महत्वपूर्ण नहीं है,संसार में यश के साथ खिलाना महत्वपूर्ण है। यदि मीठा खिलाओगे तो मीठा यश मिलता है और कड़वा खिलाओगे तो कड़वा अपयश मिलता है। जैसे यहां विनोद बडज़ात्या को तो अच्छे से पता होगा,क्योंकि यहां समाज के भोजन की व्यवस्था जो कर रहे हैं।
आचार्य ने कहा कि मित्रों आप सब सूखी रोटी खा लेना लेकिन मेहमान आए तो उन्हें बालूशाही खिलाना,दूध जलेबी खिलाना,क्योंकि जब मेहमान खाकर जाएंगे तो आपको याद करेंगे। जहां खाने वाले को भगवान का नाम लेना था लेकिन वह खिलाने वाले को याद कर रहा है, उसके ज्ञान में आप गेय बन गए हो, कितनी महिमा है फिर खिलाने वाले की,इसलिए भाई आप एक दिन घर में सूखा खा लेना पर मेहमान को रुखा मत खिलाना। स्वयं दुख में जी लेना लेकिन नगर में साधु महात्मा मुनिराज आए तो सेवा कर लेना।
आचार्य ने कहा कि कुसंस्कार ज्ञानियों डाकू बना देते हैं और सुसंस्कार साधु बना देते हैं। यदि सुसंस्कार बढ़ जाएंगे तो साधु बढ़ जाएंगे और यह राष्ट्र अध्यात्म के शिखर पर पहुंचेगा। भारत ने मांस और रक्त के थक्के को भेजने का काम नहीं किया है, सनातन काल से अध्यात्म विद्या भेजने का काम किया है। विश्वास मानिए विदेश में बड़े बड़े वैज्ञानिक मिल जाएंगे लेकिन आचार्य विद्यासागर,आचार्य विराग सागर जैसे महान संत अमेरिका में नहीं मिलेंगे। बाहर के लोग भारत आते हैं क्योंकि भारत भूमि सुंदर चारित्रधारी साधु संतों दिगंबर मुनिराजों की भूमि है और ये संत सिर्फ भारत में ही मिल सकते हैं।
आचार्य ने कहा कि जिसने धर्म की शरण को प्राप्त किया है,धन्य है वह धर्म मंत्री अमरजीत जी,जो मित्र भक्त बना करके भगवान बनाता है, उसका नाम जैन धर्म है। जो भक्त बनकर भगवत्ता की ओर ले जाता है उसका नाम ज्ञानियों श्रमण संस्कृति जैन धर्म है। जीवन में कभी भूल मत जाना जिस धर्म ने भक्तों को भगवान बना दिया, भक्तों को भगवान बनाने की कला सिखाता है उसका नाम जैन धर्म है। जैसे जो राजनीति में माइक लगाते रहते हैं एक दिन उनको माइक मिल जाता है, जो दरी बिछाते रहते हैं वह कुर्सी पर बैठ जाते हैं। जब नेता का माइक लगाते लगाते,दरी बिछाते बिछाते कुर्सी मिल सकती है तो भगवान की भक्ति करते करते भगवान क्यों नहीं बन सकते ?
आचार्य ने कहा कि आज धरती पर जितने वीतरागी निग्र्रंथ तपोधन आपको दिखाई दे रहे हैं,इन सबने कभी न कभी मुनिराजों की सेवा की है,यदि आचार्य शांतिसागर महाराज का नाम लेते हो तो वह भी आचार्य आदिसागर को कंधे पर बैठाकर दक्षिण भारत में गंगा पार कराया करते थे। आप जिन-जिन आचार्यों के नाम लेते हो,इनके अंदर की गुरुभक्ति को भी देखिए। जो उत्कृष्ट पाएगा, ऊंचाइयां हासिल करेगा उसके भीतर धर्म भरा होना चाहिए।
आचार्य ने कहा कि ज्ञानियों दो बातें हमेशा ध्यान रखना, पहली कि जीवन में परमात्मा के प्रति,गुरु के प्रति और जिनवाणी के प्रति भक्ति और दूसरी मित्र के साथ विश्वास,ये दो बातें जिसके पास हो उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता है।आचार्य परमनंदी स्वामी ने धम्म रसायण ग्रंथ में जो सूत्र दिया है वो आलौकिक है। जो पूज्य है, पूज्य होंगे व पूज्य हो रहे हैं, वे सब धर्म की शरण से हो रहे हैं।