भोपाल । धर्मांतरित आदिवासियों यानी ईसाई धर्म ग्रहण कर चुके आदिवासियों को आरक्षण देने के खिलाफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अभियान छेड़ रखा है। संघ ने एक मंच बनाकर उनके बैनर तले मालवा निमाड़ और महाकौशल प्रांत के कई शहरों में बड़ी रैलियां की हैं। संघ का मानना है कि सैद्धांतिकरूप से ईसाई धर्म में ऊंच नीच या भेदभाव नहीं है और ईसाई धर्म अपनाकर आदिवासी सुपीरियर बन जाते हैं, तो उन्हें आरक्षण देने की क्या जरुरत है? इस मुद्दे को लेकर संघ परिवार ने पिछले दिनों मालवा निमाड़ में माहौल गर्मा दिया था। इसी तर्ज पर महाकौशल में भी अभियान छेड़ा जा रहा है। भाजपा इस मामले में जाहिर तौर पर संघ परिवार का समर्थन कर रही है। जबकि कांग्रेस की परेशानी बढ़ गई है। धर्मांतरित ईसाईयों के आरक्षण का प्रावधान पं. जवाहरलाल नेहरु ने लागू किया था। इसलिए कांग्रेस इस आरक्षण का विरोध नहीं कर सकती और जिस तरह से यह मुद्दा हिंदू आदिवासियों के बीच सरगर्म हुआ है, वह आरक्षण के समर्थन में बयान भी नहीं दे सकती। धर्मांतरित यानी ईसाई आरक्षण के प्रावधन से हिंदू आदिवासियों को नुकसान हो रहा है, क्योंकि सरकारी नौकरियों में क्रिप्टो क्रिश्चियंस आदिवासियों का बर्ताव रहता है। आदिवासियों के बीच चर्च का संगठित तंत्र है, जिसके कारण धर्मांतरित आदिवासियों को सभी सरकारी लाभ जल्दी मिल जाते हैं। इस संबंध में संघ के एक पदाधिकारी का मानना है कि चर्च मानता है कि आदिवासियों को ईसाई धर्म में मतांतरित करने का अर्थ है कि उन्हें अंधेरे से प्रकाश में लाया गया है। यानकी बकौल चर्च वे इनफीरियर से सुपरीरियर बन गए हैं। ऐसे में जब कोई सुपीरियर बन जाता है तो उसे कमजोर या वंचित कैसे माना जा सकता है। इसलिए ईसाई आदिवासियों को आदिवासी आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए। इस मुद्दे पर संघ ने लंबी बहस छेड़ी है और हिंदू आदिवासियों के गले में यह बात पूरी तरह से उतार दी गई है कि ईसाई आदिवासियों को आरक्षण देने से उनके हक मारे जा रहे हैं। इस मुद्दे पर भी संघ आदिवासियों को आंदोलित कर रहा है।