जांजगीर-चांपा। छत्तीसगढ़ में पत्रकारों के खिलाफ धमकी और दुर्व्यवहार की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। अब एक ताजा मामले में सक्ती जिले के निलंबित पुलिस इंस्पेक्टर प्रवीण राजपूत पर पत्रकार राजीव लोचन साहू को जान से मारने की धमकी देने का गंभीर आरोप लगा है। इस घटना के बाद पूरे पत्रकार समाज में भारी आक्रोश है। छत्तीसगढ़ में पत्रकार सुरक्षा कानून को अमल में लाने की लगातार मांग पत्रकारों के द्वारा किया जा रहा है लेकिन सरकार अब तक पत्रकार सुरक्षा कानून को अमल में नहीं ला पा रही है। पत्रकार अब अपनी सुरक्षा को लेकर बेहद चिंतित है।
जांजगीर-चांपा जिले के घिवरा गांव निवासी पत्रकार राजीव लोचन साहू ने बिर्रा थाना प्रभारी और एसपी को दिए गए शिकायत आवेदन में बताया है कि 22 जनवरी की रात 11:09 बजे उन्हें सक्ती जिले के निलंबित पुलिस इंस्पेक्टर प्रवीण राजपूत ने फोन किया। फोन पर न केवल गाली-गलौज की गई, बल्कि उन्हें जान से मारने की धमकी भी दी गई। पत्रकार ने इस धमकी को लेकर गहरी चिंता जताते हुए आरोपी इंस्पेक्टर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की है।
इस मामले को लेकर चाम्पा एसडीओपी यदुमणि सिदार ने मोबाइल से चर्चा के दौरान बताया कि इंस्पेक्टर प्रवीण राजपूत फिलहाल निलंबित है। उन्होंने बताया कि इंस्पेक्टर के खिलाफ धमकी और गाली-गलौज की शिकायत मिली है। पुलिस ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है। उन्होंने यह भी बताया कि इस मामले की जानकारी एसपी को भी है। जांच के बाद दोषी पाए जाने पर इंस्पेक्टर प्रवीण राजपूत के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी।
पत्रकार समाज में गुस्सा : इस घटना के बाद पत्रकारों में भारी रोष है। इसे प्रेस स्वतंत्रता और लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर सीधा हमला बताया जा रहा है। पत्रकार संगठनों ने आरोपी इंस्पेक्टर के खिलाफ तुरंत कड़ी कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है कि यदि ऐसे मामलों में सख्ती से निपटा नहीं गया तो पत्रकारों के लिए काम करना और भी मुश्किल हो जाएगा।
सवालों के घेरे में कानून का रक्षक :
यह घटना उस समय सामने आई है जब पत्रकार अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए समाज और प्रशासन के बीच एक सेतु का काम कर रहे हैं। ऐसे में कानून के रक्षक माने जाने वाले एक अधिकारी का इस प्रकार का व्यवहार बेहद चिंताजनक है। यह घटना कानून और व्यवस्था पर भी सवाल खड़े करती है।
मांग और अपील : पत्रकार संगठनों ने इस मामले में आरोपी इंस्पेक्टर के खिलाफ तत्काल एफआईआर दर्ज करने और सख्त कार्रवाई की मांग की है। साथ ही, राज्य सरकार और प्रशासन से आग्रह किया है कि पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए ताकि वे बिना डर के अपने कार्यों को अंजाम दे सकें।
छत्तीसगढ़ में इस तरह की घटनाएं लोकतंत्र की नींव को कमजोर करती हैं। यदि समय रहते ऐसे मामलों पर कार्रवाई नहीं हुई, तो यह प्रेस की स्वतंत्रता के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। अब देखना यह है कि प्रशासन इस मामले में क्या कदम उठाता है और पीड़ित पत्रकार को कब तक न्याय मिलता है।