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आंगनबाड़ियों में अब स्थानीय भाषा और बोली में पढ़ेंगे बच्चे, छत्तीसगढ़ी, गोंडी, हल्बी, भतरी, सरगुजिया, कोरवा, पाण्डो, कुड़ुख, कमारी में मिलेगी बच्चों को शिक्षा

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रायपुर। आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों को अब उनकी स्थानीय भाषा और बोली में शिक्षा दी जाएगी, ताकि बच्चे अपनी मातृभाषा और बोली में उचित और प्रभावी तरीके से सीखें और उनका समुचित विकास हो सके। छत्तीसगढ़ के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग भाषा और बोली प्रचलन में है। सुदूर वनांचल अनुसूचित क्षेत्रों में विशेष रूप से स्थानीय बोलियां प्रचलन में है। इसे देखते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने हाल ही में स्कूलों में बच्चों को स्थानीय भाषा में शिक्षा देने की पहल की है। इस पहल को आगे बढ़ाते हुए कलेक्टरों को आंगनबाड़ी केंद्रों में दी जाने वाली अनौपचारिक स्कूल पूर्व शिक्षा में छत्तीसगढ़ी, गोंडी, हल्बी, भतरी, सरगुजिया, कोरवा, पाण्डो, कुड़ुख तथा कमारी जैसी स्थानीय भाषा और बोलियों का समावेश करने कहा गया है। उल्लेखनीय है कि उत्तर बस्तर कांकेर जिले में छत्तीसगढ़ी और गोंड़ी, कोण्डागांव और दंतेवाड़ा में गोड़ी, हल्बी और भतरी, नारायणपुर में गोड़ी और हल्बी, बीजापुर में तेलगू, गोड़ी, हल्बी, बस्तर में हल्बी, धु्रव-हल्बी, गोड़ी तथा सुकमा में गोड़ी बोली जाती है। महिला एवं बाल विकास विभाग के सचिव सिद्धार्थ कोमल सिंह परदेशी ने समस्त जिला कलेक्टरों को पत्र जारी कर बच्चों को यथासंभव उनकी मातृभाषा में पढ़ाने के लिए कहा है। इसके लिए कलेक्टरों को महिला एवं बाल विकास विभाग केे जिला कार्यक्रम अधिकारियों को मार्गदर्शन देते हुए एक सप्ताह में कार्यवाही सुनिश्चित करने कहा गया है। उल्लेखनीय है कि बच्चों में उचित मानसिक, शारीरिक तथा सामाजिक विकास की नींव डालने के लिए आंगनबाड़ी केन्द्रों के माध्यम से स्कूल पूर्व अनौपचारिक शिक्षा दी जा रही है। अनौपचारिक स्कूल पूर्व शिक्षा के लिए उपलब्ध संसाधनों और पाठन सामग्री का स्थानीय भाषा या बोली में अनुवाद कराया जाएगा। इसके साथ ही स्थानीय भाषाओं के जानकार अधिकारी, कर्मचारी या कार्यकर्ता की पहचान कर उनके माध्यम से अन्य सभी कार्यकारियों को प्रशिक्षित करने कहा गया है। इसके लिए प्रत्येक जिले में प्रशिक्षकों की सूची तैयार की जाएगी। स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करते हुए भाषा के विकास के लिए उचित संदर्भ तैयार किया जाएगा, जिसका आंगनबाड़ी केन्द्रों में दी जा रही अनौपचारिक शिक्षा में उपयोग किया जा सके।

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