Home छत्तीसगढ़ जशपुर में जगह-जगह विद्यमान है प्रागैतिहासिक काल के अवशेष शैलचित्र, टूल्स और...

जशपुर में जगह-जगह विद्यमान है प्रागैतिहासिक काल के अवशेष शैलचित्र, टूल्स और महापाषाणिक समाधियां हैं आदिमानव के रहने के प्रमाण

151
0

संतोष गुप्ता, जशपुर। छत्तीसगढ़ राज्य के उत्तर पूर्व का सीमावर्ती जिला जशपुर कई विशेषताओं को अपने आप में समेटे हुए है। प्राकृतिक सुन्दरता और प्रचुर वनसम्पदा से भरपूर यह जिला छत्तीसगढ़ का शिमला कहा जाता है। हरे-भरे साल के ऊंचे-ऊंचे वृक्ष से आच्छादित और छोटी-छोटी पहाड़ियों की सुरम्य वादियों से घिरे इस जिले का मौसम साल भर खुशगवार रहता है। यह जिला अपनी प्राचीन कला, संस्कृति, आदिवासी जनजीवन एवं समृद्ध परंम्परा के मामले में भी अपनी अलग पहचान रखता है। अपनी विशेष भौगोलिक स्थिति के चलते यह क्षेत्र आदिमानवों के रहवास का प्रमुख केन्द्र रहा है। जशपुर जिले में आदिमानव के मौजूदगी के कई प्रमाण यत्र-तत्र विद्यमान है। जिले में प्रागैतिहासिक काल के अवशेष भी जगह-जगह मिलते हैं। जिले की पहाड़ियों की कंदराओं में शैलचित्र, पाषाणकाल के औजार के अवशेष एवं महापाषाणिक समाधियां देखने को मिलती हैं।


आरा बंगुरकेला, जयमरगा इलाके सहित कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां प्रागैतिहासिक काल की महापाषाणिक समाधियां विद्यमान है। रानीदाह से लेकर लिखाआरा, मनोरा, बगीचा इलाके की पहाड़ियों एवं नदी नालों के आसपास बहुत सारे ऐसे पत्थर के टुकड़े आपको मिल जाएगें, जिनका उपयोग आदिमानव औजार के रूप में करते रहे हैं। जशपुर जिले के पुरावैभव को चिन्हित एवं संरक्षित करने के उद्देश्य से जिला प्रशासन द्वारा विशेष प्रयास शुरू किया गया है। कलेक्टर निलेशकुमार महादेव क्षीरसागर की रूचि के चलते कई पुरातात्विक स्थलों का अध्ययन एवं उन्हें संरक्षित करने की पहल शुरू की गई है। बीते एक सालों के दौरान पुरातत्ववेत्ताओं की टीम ने जशपुर जिले का भ्रमण कर कई प्राचीन स्थलों एवं आदिमानव के रहवास के प्रमाण भी एकत्र किए हैं। बीते दिनों कलेक्टर निलेशकुमार महादेव क्षीरसागर के साथ सह पुरातत्ववेद बालेश्वर कुमार बेसरा और अंशुमाल तिर्की ने आरा, रानीदाह, दुलदुला, बंगुरकेला तथा जयमरगा इलाके का दौरा कर कई प्रागैतिहासिक काल की महापाषाणिक समाधियां, छाया स्तंभ एवं पाषाणकालीन टूल्स का अवलोकन एवं अध्ययन किया। पुरातत्वविद श्री बेसरा एवं अंशुमाल तिर्की ने बताया कि जशपुर जिले के सभी क्षेत्रों में महापाषाणिक समाधियां मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि उरांव जनजाति इस इलाके में बहुतायत रूप से निवासरत हैं। इस जनजाति की यह प्रथा है कि व्यक्ति के मरने के बाद उसके द्वारा जीवन काल में उपयोग में लाई गई सामाग्री को भी इसके शव के साथ दफना देते हैं। पहचान के रूप में उसके सिरहाने एक पत्थर लंबवत लगा देते है। आरा गांव में कई महापाषाणिक समाधियां विद्यमान हैं। आरा चैक के समीप भी एक महापाषाणिक समाधि के पास गढ़े पत्थर पर मानवाकृति उकेरी हुई मिली है। रानीदाह में पंचभईया स्थल के आस-पास पाषाणकालीन टूल्स मिले हैं। जिसका उपयोग आदिमानव शिकार करने के लिए किया करते थे। दुलदुला में नवपाषाणकालीन दो गदा शीर्ष (रिंगस्टोन), सोकोडीपा के ग्रामीण केतार के पास मौजूद है। दुलदुला में ही मेन्हिर (एकास्म पत्थर) समाधि मिली है। यहां विद्यमान पत्थर की ऊंचाई लगभग 11 फुट है। बंगुरकेला में गोड़ जनजाति की समाधि (बोल्डर हिपस्टोन) देखने को मिली है। यहां एक छाया स्तंभ भी मिला है। जिसकी ग्रामीण पूजा अर्चना भी करते हैं। बंगुरकेला के रामरेखा मंदिर के समीप भी मेन्हिर(एकास्म समाधि) मिली है, जो प्रागैतिहासिक काल की है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here