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प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय कांसाबेल में महाशिवरात्रि के अवसर पर 88वीं त्रिमूर्ति शिव जयंती उत्सव मनाया गया

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जशपुर। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के उप सेवा केंद्र कांसाबेल में महाशिवरात्रि के अवसर पर 88वीं त्रिमूर्ति शिव जयंती उत्सव मनाया गया। इस अवसर पर पूर्व डीडीसी डॉ अजय शर्मा , बालाजी ट्रांसपोर्ट के ऑनर एवं गायत्री मंदिर संरक्षक वीरेंद्र गुप्ता , ब्र.कु. बसंती दीदी, ब्र.कु कुसुम बहन, ब्र.कु सुशीला बहन, ब्र.कु. शिव भाई एवं संस्था के कई भाई बहनें उपस्थित रहे। इस अवसर पर शिव ध्वज फहराकर ध्वज के नीचे प्रतिज्ञा की कि सदा शुभकामना और शुभकामना रखते हुए सभी के प्रति रहम और कल्याण की भावना रखेंगे।

गुमला मुख्य सेवा केंद्र संचालिका शांति दीदी के मार्गदर्शन में ब्र.कु. सुशीला बहन ने कहा कि हमारे देश में हर वर्ष शिवरात्रि का पर्व बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन शिवभक्त शिव मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर बेलपत्र, बेर, अक के फूल, भांग, धतूरा आदि चढ़ाते हैं और उपवास तथा रात्रि जागरण करते हैं। सबसे रोचक बात तो यह है कि शिव की पूजा अन्य सभी देवी-देवताओं की पूजा से बिलकुल अलग रस्मों द्वारा की जाती है। इन सब रस्मों का आध्यात्मिक रहस्य यह दर्शाता है कि शिव भोलेनाथ की मनुष्य आत्माओं से यही आशा है कि भांग, धतूरा और अक के फूल जैसे निरर्थक अवगुण; जो मनुष्य की मानवीयता को तार-तार कर रहे हैं उन्हें परमात्मा के ऊपर अर्पित कर, उनसे मिल रहे प्रेम, आनंद, सुख और शांति के गुणों से अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाएं। शिवरात्रि में की जाने वाली हर रस्म के आध्यात्मिक रहस्य को समझ अपने जीवन में अपना कर सच्ची शिवरात्रि मनाएं।

विरेंद्र गुप्ता ने बुलाए गए आमंत्रण के लिए दिल से आभार व्यक्त करते हुए कहा कि ब्रह्माकुमारी संस्थान हमें धर्म एवं आध्यात्मिकता का मार्ग दिखाकर सामाजिक बुराइयां जैसे नशा इत्यादि से दूर करने की शिक्षा देती है तथा हमें अपनी संस्कृति को बनाए रखना चाहिए। जिससे हम अपने जीवन में सत धर्म को समाहित कर सकेंगे ।इस प्रकार के लोक कल्याण हेतु किये जा रहे कार्यों के लिए मैं सदा ही ब्रह्माकुमारी संस्थान के साथ तत्पर रहूंगा।

डॉक्टर अजय शर्मा जी ने कहा कि मूल मंत्र है हमें बुराइयों से दूर रहना चाहिए। मूल शब्द ओम शांति है जो इस संसार में किसी भी बुराई से मुक्त रहने का बल देती है जिससे आपका जीवन मंगलमय हो सकता है। गीता में परमात्मा के स्वरूप को ओम कहा गया है। ओम से शांति की प्राप्ति होती है। दुनिया में कहा गया है शांति से बढ़कर कोई चीज नहीं होती । शांति के समान कोई तपस्या नहीं होती। अंत में उन्होंने संस्थान में बुलाए जाने पर आभार व्यक्त किया।

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